बच्चों में डायपर रैश के लिए 7 घरेलू उपचार

बच्चों में डायपर रैश के लिए घरेलू उपचार

डायपर रैश शिशुओं में होने वाली आम समस्या है, डायपर चाहे कपड़े का इस्तेमाल किया जाए या डिस्पोजेबल इस समस्या से शिशु और माता पिता दोनों ही परेशान रहते हैं। रैश होने पर त्वचा सूज जाती है और लाल हो जाती है।

डायपर रैश आमतौर पर गीले या लंबे समय तक डायपर ना बदले जाने का परिणाम होता है। त्वचा की संवेदनशीलता और रगड़ भी इसका कारण बनती है।

यह समस्या बच्चों के लिए बहुत कष्टप्रद होती है क्योंकि वे असहज महसूस करते हैं और रोते रहते हैं। बच्चों में डायपर रैश के लिए घरेलू उपचार का उपयोग किया जा सकता है। 

डायपर रैश के लक्षण

त्वचा के लक्षण – रैशेस होने पर  डायपर वाले क्षेत्र और जांघों की त्वचा लाल हो जाती है।

स्वभाव में बदलाव – शिशु सामान्य दिनों की तुलना में अधिक असहज लगता है। डायपर बदलने के दौरान परेशानी बढ़ जाती है। डायपर क्षेत्र को छूने या धोने पर भी बच्चा रोता है।

डायपर रैश होने के कारण

डायपर का लंबे समय तक गीला रहने के आलावा रेशेस होने के और भी कई कारण हैं,जैसे  –

1. रगड़ लगना – बच्चे को टाइट-फिटिंग डायपर या कपड़े पहनाने से बचना चाहिए क्योंकि यह त्वचा पर रगड़ खाते रहते हैं, जिससे दाने हो जाते हैं।

2. मल और मूत्र से जलन – लंबे समय तक मूत्र या मल के संपर्क में रहने से बच्चे की संवेदनशील त्वचा पर रैशेस हो सकते हैं।

3. बैक्टीरियल या फंगल संक्रमण – साधारण त्वचा संक्रमण आसपास के क्षेत्रों को भी संक्रमित कर सकता है। डायपर से ढके हुए क्षेत्र पर बैक्टीरिया तेज़ी से फैलता है।

4. एंटीबायोटिक्स – एंटीबायोटिक्स लेने वाले शिशुओं को भी डायपर रैश से पीड़ित होने की अधिक संभावना होती है। जो बच्चे मां के दूध का सेवन करते हैं और यदि उनकी माँ एंटीबायोटिक्स ले रही हो तो उनमें भी रैश हो सकते हैं। 

5. नए भोजन की शुरुआत  – जैसे ही बच्चे ठोस आहार लेना शुरू करते हैं, उनके मल में बदलाव आता है, मल बार बार भी आ सकता है। इससे डायपर रैश विकसित होने की संभावना बढ़ जाती है।

6. संवेदनशील त्वचा – जिन शिशुओं की त्वचा पहले से ही संवेदनशील है, उनमें इसका खतरा अधिक होता है।

बच्चों को डायपर रैश होने से कैसे बचाएं

  • रैश से बचने के लिए डायपर क्षेत्र को साफ और सूखा रखना सबसे अच्छा विकल्प है।
  • डायपर को नियमित रूप से बदलें। 
  • हर बार जब गंदा डायपर बदलें तो बच्चे के निचले हिस्से को पानी से साफ करें और तौलिये से हलके हाथों से सुखाएं या इसे हवा में सूखने दें।
  • हमेशा इस बात का ध्यान रखें कि डायपर ज़्यादा टाइट न हो। 
  • जब तक संभव हो बच्चे को बिना डायपर के छोड़ें। 
  • कठोर साबुन और वाइप्स से बचे – हल्के, खुशबू रहित साबुन का उपयोग करें और ऐसे वाइप्स का इस्तेमाल करने से बचें जिनमें अल्कोहल या अन्य कठोर रसायन हों।

 बच्चों में डायपर रैश के लिए घरेलू उपचार

सभी निवारक कदम उठाने के बावजूद भी बच्चों को रैशेस हो सकते हैं। इस समस्या से निपटने के लिए तुरंत इन घरेलू उपचारों को आज़मा सकते हैं क्योंकि ये शिशु के लिए सुरक्षित हैं।

1. एलोवेरा – एलोवेरा एक एंटी-इंफ्लेमेटरी जेल है, जो जलन से तुरंत राहत देता है। प्राकृतिक या बाजार में उपलब्ध जेल का उपयोग कर सकते हैं। बेहतर परिणामों के लिए जेल को लगाने से पहले फ्रिज में रखकर थोड़ा ठंडा होने दें।

2. नारियल तेल – शुद्ध नारियल तेल में कई चिकित्सीय गुण है। इसके एंटी-फंगल और एंटी-बैक्टीरियल गुण बहुत जल्दी राहत देते हैं। बच्चे के निचले हिस्से को अच्छे से धोएं और मुलायम तौलिये से सुखाएं। प्रभावित क्षेत्र पर नारियल का तेल लगाएं और चकत्ते पूरी तरह से ठीक होने तक इसका प्रयोग करें। 

3. दही – रैशेस को ठीक करने के लिए सादे दही का उपयोग किया जा सकता है। रैशेस वाले स्थान पर दही की परत लगाएं और इसे कुछ देर तक सूखने दें। यह क्रीम के समान और प्रभावी ढंग से काम करेगा।

4. ओटमील स्नान – नवजात शिशु के डायपर रैश के इलाज के लिए ओटमील प्रभावी उपाय है। इसे बनाना आसान है और यह तुरंत काम करता है। ओटमील स्नान तैयार करने के लिए, पानी में थोड़ी मात्रा में पिसा हुआ ओटमील मिलाएं और बच्चे को कुछ मिनट के लिए उसमें बैठाएं।

5. जैतून का तेल – वर्जिन जैतून का तेल बैक्टीरिया या फंगल विकास को रोकता है। ओलिव ऑयल त्वचा को मॉइस्चराइज़ करता है और पोषण देता है। नियमित रूप से इसे लगाने पर दाने जल्दी ठीक हो जाते हैं। 

6. कैमोमाइल और शहद – कैमोमाइल और शहद का स्प्रे तैयार करें, इसके लिए दो कप कैमोमाइल चाय और एक चम्मच शहद मिलाएं। शहद और कैमोमाइल का मिश्रण एक प्राकृतिक एंटीसेप्टिक के रूप में कार्य करता है और हर बार जब इसे प्रभावित क्षेत्र पर स्प्रे करते हैं तो ठंडा प्रभाव देता है। 

7. माँ का दूध – माँ का दूध वास्तव में डायपर रैश को ठीक करने में प्रभावी है। प्रभावित क्षेत्र पर कुछ बूंदों का उपयोग करें और इसे सूखने दें। 

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About the Author: Kusum Kaushal

कुसुम कौशल ने उत्तराखंड में स्थित विश्वविद्यालय (हेमवती नंदन बहुगुणा यूनिवर्सिटी) से इकोनॉमिक्स में पोस्ट ग्रेजुएशन किया है। हिंदी उनकी मूल भाषा है।

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